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आदिद्धोता॑रं वृणते॒ दिवि॑ष्टिषु॒ भग॑मिव पपृचा॒नास॑ ऋञ्जते। दे॒वान्यत्क्रत्वा॑ म॒ज्मना॑ पुरुष्टु॒तो मर्तं॒ शंसं॑ वि॒श्वधा॒ वेति॒ धाय॑से ॥

English Transliteration

ād id dhotāraṁ vṛṇate diviṣṭiṣu bhagam iva papṛcānāsa ṛñjate | devān yat kratvā majmanā puruṣṭuto martaṁ śaṁsaṁ viśvadhā veti dhāyase ||

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Pad Path

आत्। इत्। होता॑रम्। वृ॒ण॒ते॒। दिवि॑ष्टिषु। भग॑म्ऽइव। प॒पृ॒चा॒नासः॑। ऋ॒ञ्ज॒ते॒। दे॒वान्। यत्। क्रत्वा॑। म॒ज्मना॑। पु॒रु॒ऽस्तु॒तः। मर्त॑म्। शंस॑म्। वि॒श्वधा॑। वेति॑। धाय॑से ॥ १.१४१.६

Rigveda » Mandal:1» Sukta:141» Mantra:6 | Ashtak:2» Adhyay:2» Varga:9» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:21» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - (यत्) जो (पुरुष्टुतः) बहुतों ने प्रशंसा किया हुआ (विश्वधा) विश्व को धारण करनेवाला (क्रत्वा) कर्म वा विशेष बुद्धि से और (मज्मना) बल से (धायसे) धारणा के लिये (शंसम्) प्रशंसायुक्त (मर्त्तम्) मनुष्य को और (देवान्) दिव्य गुणों को (वेति) प्राप्त होता है, उसको (आत्) और (होतारम्) देनेवाले को जो (पपृचानासः) सम्बन्ध करते हुए जन (दिविष्टिषु) सुन्दर यज्ञों में (भगमिव) धन ऐश्वर्य्य के समान (वृणते) सेवते हैं वे (इत्) ही दुःखों को (ऋञ्जते) भूँजते हैं अर्थात् जलाते हैं ॥ ६ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो अच्छे वैद्य का रत्न के समान सेवन करते हैं, वे शरीर और आत्मा के बलवाले होकर सुखी होते हैं ॥ ६ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

यद्यः पुरुष्टुतो विश्वधा क्रत्वा मज्मना धायसे शंसं मर्त्त देवाँश्च वेति तमाद्धोतारं ये पपृचानासो दिविष्टिषु भगमिव वृणते त इद्दुःखान्यृञ्जते दहन्ति ॥ ६ ॥

Word-Meaning: - (आत्) (इत्) (होतारम्) दातारम् (वृणते) संभजन्ति (दिविष्टिषु) दिव्यासु इष्टिषु (भगमिव) यथा धनैश्वर्यम् (पपृचानासः) संपर्कं कुर्वाणाः (ऋञ्जते) भृञ्जति (देवान्) दिव्यान् गुणान् (यत्) यः (क्रत्वा) कर्मणा प्रज्ञया वा (मज्मना) बलेन (पुरुष्टुतः) पुरुभिर्बहुभिः प्रशंसितः (मर्त्तम्) मनुष्यम् (शंसम्) प्रशंसितम् (विश्वधा) यो विश्वं दधाति सः (वेति) प्राप्नोति (धायसे) धारणाय ॥ ६ ॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। ये सद्वैद्यं रत्नमिव सेवन्ते ते शरीरात्मबला भूत्वा सुखिनो जायन्ते ॥ ६ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे चांगल्या वैद्याचा रत्नाप्रमाणे स्वीकार करतात ते शरीर व आत्मा बलवान करून सुखी होतात. ॥ ६ ॥